Alternative Politics of AAP – सिंहासन खाली करो, के जनता आती है
आज से ठीक 2 साल पहले, 26 नवम्बर (संविधान दिवस) के मौके पर एक राजनैतिक आंदोलन का आगाज़ हुआ, नाम रखा गया आम आदमी पार्टी। राजनैतिक विकल्प देने का निर्णय क्यों लिया गया इसपर पहले लिख चूका हु। लेकिन आम आदमी पार्टी का लक्ष्य केवल एक राजनैतीक विकल्प देना नहीं बल्कि देश में वैकल्पिक राजनीति स्थापित करना है। राजनैतिक विकल्प और वैकल्पिक राजनीति के बिच का अंतर समझाने के लिए एक छोटी सी कहानी सुनाता हु.
एक गाँव में दवाइयो की 5 दुकाने थी. सभी दुकानो पर दवाइयो को दुगने भाव पर बेचा जाता था. लोग कभी एक दूकान से दवा खरीदते तो कभी दूसरी दूकान से लेकिन हर बार ठगे जाते. लोगो के पास कोई और विकल्प नहीं था. दवा खरीदने दुसरे गाँव जाये तो आने जाने में बहोत पैसा खर्च होता. पांचो दुकानदार अपनी अपनी दुकान का खुब प्रचार करते और दुसरे की बुराई भी लेकिन दवा की कीमत सभी दुकानों में बराबर.
गाँव का एक पढ़ा लिखा नौजवान रमेश यह सब देखकर समझ गया की इस गाँव में दवाइयों के धंदे में मोटी कमाई है. उसने भी दुकान खोल ली और कुछ दवाइया सस्ते दाम पर बेचने लगा. कुछ दिनों में दुकान चल पड़ी और फिर उसने भी दवाइयों के दाम बढ़ा दिए. गाँव में अब 5 के बजाय 6 दुकाने थी लेकिन गांववालों को कोई राहत नहीं मिली.
गाव के लोग परेशान हो गए थे. कुछ लोग आगे आये और उन्होंने दवा दुकानों के सामने धरना दे दिया, मांग थी दवाइयों के दाम कम करो. उन्हें देख गाव के और लोग भी धरने पर बैठ गए. धरने ने आन्दोलन का रूप ले लिया. दुकानदारो ने समझदारी से काम लिया, सभी को आश्वासन दिया की दाम कम कर देंगे. कुछ दिनों के लिए दाम कम हुए और फिर बढ़ गए. इस तरह के आन्दोलन 2-3 बार हुए. धीरे धीरे आन्दोलन के लिए आने वालो लोगो की संख्या कम होने लगी. निराश होकर गांववालों ने उम्मीद छोड़ दी.
कुछ दिनों बाद शहर से आये किसी सज्जन ने गांववालों को सलाह दी – आप सब मिलकर एक दुकान क्यों नहीं खोल लेते. गांववालों को बात जच गई. सबने मिलकर एक दुकान खोली, कुछ नियम बनाये जिससे इस दुकान का हाल रमेश की दुकान की तरह न हो. दुकान खोलने का उद्देश यह नहीं था की इस दुकान में बिक्री जादा हो बल्कि यह था की इस दुकान के दबाव में बाकि दुकानदार भी दवाइया सही दाम पर बेचे. हुआ भी ऐसा ही, इस दुकान के दबाव में आकर बाकि दुकानदारो को भी दवाइयों के दाम कम करने पड़े. उनके पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. अब दवा चाहे जहा से खरीदी जाये उनका उद्देश् पूरा हो रहा था. लेकिन यह तभी तक चलेगा जब तक गाँववालो द्वारा लगाई दूकान बाजार में है. रमेश ने कमाई के उद्देश से जो दुकान खोली वो है राजनैतिक विकल्प और गांवावालो ने मिलकर दवा सस्ती करने के उद्देश से जो दुकान खोली वो है वैकल्पिक राजनीति.
राजनीति के इस बाजार में सारी दुकाने जनता को सालो से लूट रही है.
जनता ने खुद अब अपनी दूकान खोल ली और लक्ष्य है पुरानी दुकानो को भी सही रास्ते पर लाना.
भारतीय राजनीति में अपराधियों एवं धन का प्रभाव किसी से छुपा नहीं है. भ्रष्टाचार के खिलाफ बाते सभी करते है लेकिन इसे रोकता कोई नहीं. टिकट पाने के लिए सालो तक इस दलदल में एडिया रगड़ने और करोडो रुपये बार बार खर्च करने के बाद चुनाव जितने वाले लोगो से हम किस तरह उम्मीद कर सकते है की वो भ्रष्टाचार रोकेंगे? वंशवाद के खिलाफ हर पार्टी बात करती है लेकिन इससे अछूती कोई पार्टी नहीं.
जरूरत है एक राजनैतिक आन्दोलन की, बाहुबलियों के इशारे पर चलने वाली, उद्योगपतियों के हितो के लिए काम करने वाली इस राजनीति को सही दिशा देने की, सत्ता आम आदमी के हाथो में सौंपने की, इस देश में सच्चा लोकतंत्र स्थापित करने की.
आम आदमी पार्टी सत्ता में आने के बाद यह सब कर सकती है, लेकिन इस बात की क्या गारंटी की यह बदलाव दीर्घकालीन रहे? सत्ता में आने के बाद यह लोग भी बदल सकते है. इस देश में पहले भी आन्दोलन के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ था लेकिन वही आन्दोलनकारी नेता आज हमें लुट रहे है. इसके लिए जरुरी है इस देश की राजनीति को बदलने की, राजनीति के इस खेल के नियम बदलने की, परंपरागत राजनीति को उखाड़ फेंक यहाँ वैकल्पिक राजनीति स्थापित करने की.
वर्तमान राजनीति में व्याप्त सभी बुराइया भविष्य में भी इस पार्टी में न आये इसके लिए कई तरह के नियम बनाये गए. इन सभी पर विस्तार से चर्चा किसी और लेख में करूँगा. इस लेख में चर्चा करेंगे वैकल्पिक राजनीति में जित के पैमानों की.
जीत के पैमाने
पारम्परिक सोच के अनुसार राजनैतिक पार्टी का उद्देश होता है सत्ता प्राप्त करना. सत्ता प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है संख्याबल. और जीत के पैमाने होते है – चुनावो में प्राप्त वोट प्रतिशत, जीते हुए प्रत्याशियो की संख्या तथा एन केन प्रकारेण सत्ता हथियाने की सम्भावना. आम आदमी पार्टी का उद्देश चाहे जितना अच्छा हो, इस देश की व्यवस्था को बदलने के लिए, केवल राजनीति के मैदान उसके होने मात्र से बदलाव नहीं आएगा. इस सडी हुई व्यवस्था को ठीक करने के लिए आम आदमी को एक बार पुरे बहुमत के साथ सत्ता में आना आवश्यक है. लेकिन वैकल्पिक राजनीति का दीर्घकालीन उद्देश है देश की राजनीति को बदलना. इसकी जीत पैमाने चुनावी संख्याओ के गणित से परे है.
इस तरह की वैकल्पिक राजनीति में हमारी जीत के पैमाने केवल वोटो की, विधायको या सांसदो की संख्या तक सिमित नहीं है. हमारे राजनीति में होने मात्र से अन्य राजनैतिक दल जनहित की राजनीति करने को मजबूर होँगे. उन्हें हम किस हद तक बदल पाये यह भी एक पैमाना है हमारी जीत का.
वैकल्पिक राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले योगेन्द्र यादव ने हमारी जीत के 3 पैमाने बताये थे –
1) अन्य राजनैतिक पार्टियो के मैनिफेस्टो को हम किस हद तक बदल पाये?
चुनावी घोषणापत्र राजनैतिक पार्टी की नीतियो और सोच का आइना होता है. हम अपना घोषणापत्र जनता से पूछकर उनकी राय से बनाएंगे. हमारा घोषणापत्र आम आदमी के हितो के लिए होगा. अन्य पार्टिया मजबूर हो जाएगी हमारे घोषणापत्र से मुद्दे चुराने को, और यह हमारी पहली जीत होगी.
2) हमारे साफ छवि के प्रत्याशियो के सामने अन्य पार्टिया किस तरह के प्रत्याषी उतारती है?
जब हम साफ छबि के अच्छे लोकप्रिय समाजसेवको को चुनावी मैदान में उतारेंगे तो अन्य पार्टिया उनके सामने किसी अपराधी को उतारने की हिम्मत नहीं कर पायेगी. यह पार्टिया यदि अच्छे लोगो को चुनाव लड़ने के लिए उतारे तो जीत चाहे जिस पार्टी की हो अच्छे लोग विधानसभा तथा संसद पहुंचेंगे. यह भी हमारी जीत होगी.
3) युवा किसी भी देश का भविष्य होता है दुर्भाग्यवश हमारे देश का युवा राजनीति विश्वास नहीं रखता, वो इसे गन्दगी मानता है. यदि इस देश का युवा कहे की मुझे राजनीति में विश्वास है, यदि वो राजनीति में सक्रीय योगदान करने लगे तो भी बदलाव निश्चित है.
इन पैमानों पर कितनी सफल रही आम आदमी पार्टी ?
किसी भी राजनैतिक पार्टी को राष्ट्रिय पटल पर अपने आप को स्थापित करने के लिए समय लगता है. आम आदमी पार्टी को अस्तित्व में आये आज केवल 2 वर्ष हुए है. कम समय में यह पार्टी राष्ट्रिय स्तर पर एक विकल्प के रूप में देखी जाने लगी यह अपनेआप में बहोत बड़ी जीत है.
स्थापना के एक वर्ष के भीतर यह पार्टी दिल्ली जैसे राजनैतिक दृष्टी से महत्वपूर्ण क्षेत्र में सरकार बनाने की स्थिति में पहुँच गयी यह एक बहोत बड़ी सफलता है. इतने कम समय में इस पार्टी ने अपने सिद्धांतो के साथ समझौता किये बगैर अन्य पार्टियो की तुलना में बहोत कम चुनावी खर्च कर सफलता हासिल की.
योगेन्द्र यादव द्वारा सुझाये पैमानो पर यदि “आप” की सफलता को आंके –
1) आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में होने मात्र का खासा प्रभाव देखा गया. कांग्रेस बीजेपी ने न केवल घोषणापत्र से मुद्दे चुराए, बल्कि उनके नेता “आप” की नक़ल करने लगे. नेताओ के बयानो में अचानक नैतिकता शब्द का प्रयोग होने लगा, राजसी ठाठ के आदी नेता सादगी की बाते करने लगे.
2) दिल्ली चुनावो के साथ ही देशभर के युवाओ की राजनीति में रूचि बढ़ने लगी. लोकसभा चुनावो तक देश की युवाशक्ति का राजनीति में प्रभाव बढ़ने लगा. समर्थन चाहे जिस पार्टी का करे युवाओ की राजनीति में बढ़ती रूचि भविष्य के लिए एक शुभ संकेत है. देश का युवा जागरूक है. वह यदि किसी को समर्थन करता है तो अपेक्षाओं पर खरा न उतरने वाले नेताओ को सही जवाब देना भी जानता है.
3) आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारो का प्रभाव दिल्ली विधानसभा चुनावो में देखा गया. बीजेपी ने ऐन चुनावो से पहले अपने मुख्यमंत्री पद के दावेदार को बदला. हालाँकि लोकसभा चुनावो तक रणनीति बदल गई. जनता ने अपना सांसद नहीं बल्कि प्रधानमंत्री चुना। कई लोकसभा क्षेत्रो में अपराधियो को चुनावी मैदान में उतारा गया।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की इस ऐतिहासिक जीत से पीढ़ियो से सत्ता भोग रहे नेताओ की कुर्सिया डगमगाने लगी. केवल पार्टिया ही नहीं इन्हे अरबो रुपये का चंदा देने वाले उद्योगपतियोमें भी असुरक्षा फ़ैल गई. इस देश की राजनीति काफी हद तक बड़े बड़े उद्योगपतियो द्वारा संचालित की जाती है. इस विषय पर यह लेख पढ़े.
राजनैतिक पार्टियो ने अपनी रणनीति बदली. उन सभी के लिए यह नवजात पार्टी एक खतरे की तरह उभर कर आ रही थी. लोकसभा चुनावो में पैसा पानी की तरह बहाया गया और आम आदमी पार्टी चुनावी आंकड़ो के हिसाब से बुरी तरह हार गई. “आप” की यह हार चिंता का विषय नहीं है, चिंता है तो उस वैकल्पिक राजनीति की जिसकी शुरुवात मात्र हुयी है. लोकसभा चुनावो में “आप” की हार से राजनैतिक पार्टियो का हौसला बढ़ गया.
अब न कोई पार्टी भ्रष्टाचार की बात करता है , न सादगी की. नेताओ ने फिर नैतिकता को भूलकर तिकड़मबाजी शुरू कर दी. ताजा उदाहरण महाराष्ट्र में देखने को मिला – यह लेख पढ़े. जनलोकपाल, राजनीति का अपराधीकरण इन विषयो की अब चर्चा नहीं होती. चुनावो के पहले, धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने, और जातीय समीकरणो से चुनाव लड़ने की राजनीति फिर सक्रीय होने लगी. आम आदमी पार्टी चुनाव जीते न जीते, सरकार बनाये न बनाये इस देश के लिए आवश्यक है वैकल्पिक राजनीति को जीवित रखना.
अब पुरे देश की उम्मीद दिल्ली चुनावो पर टिकी है. वहा की जनता ने 49 दिनों का सुशासन देखा है, सरकार गिरने के बाद भी विधयाको ने किये हुए कार्यो को देखा है. मीडिया के कुप्रचार का प्रभाव पुरे देश पर पड़ सकता है लेकिन दिल्ली पर नहीं. अन्य पार्टियो ने भी अपनी कमर कस ली है. दिल्ली में सभी हथकंडे अपनाये जायेंगे, परदे के पीछे गठजोड़ होंगे, जातीय समीकरणो के आधार पर फर्जी प्रत्याषी उतारे जायेंगे, सत्ता रूढ़ पार्टी अपने अधिकारो का दुरुपयोग करेगी, पैसा पानी की तरह बहाया जायेगा. एक तरफ स्थापित राजनीति है और दूसरी तरफ आम जनता द्वारा चलाई जा रही वैकल्पिक राजनीति. यह लड़ाई आम आदमी के अस्तित्व की लड़ाई है. जरुरत है राजनैतिक परिवर्तन की आस रखने वाले सभी आम आदमियो को एक जुट होकर अपनी पूरी ताकत इस लड़ाई में झोंकने की.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी और फिर दोबारा वैकल्पिक राजनीति शुरुवात होगी. दिल्ली से शुरू हुयी यह बदलाव की चिंगारी पुरे देश में फैलेगी और जल्द ही सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन का सपना पूरा होगा.
सिंहासन खाली करो, के जनता आती है